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चाय: चीन-भारत के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी
16 December 2019 | By hiadmin | SISU
चाय चीनी सभ्यता के महत्वपूर्ण चिह्नों में से एक है। चीन की चाय संस्कृति का इतिहास बहुत लंबा है और इस में गहरा ज्ञान भी है। चीन में, चाय को राष्ट्रीय पेय के रूप में माना जाता है। चीनी भाषा में एक पुरानी कहावत है कि काष्ठ, चावल, तेल, नमक, सोया सॉस, सिरका और चाय से एक नया दिन शुरू हो सकता है, जो चाय का महत्व बताती है। चीन चाय की मातृभूमि है, जो चाय के पेड़ों की खोज और खेती करने वाला और चाय की पत्ती का उपयोग करने वाला दुनिया का पहला देश है।
चाय संस्कृति की अधिक से अधिक जानकारियां हासिल करके उसका प्रचार-प्रसार करने के लिए, 1 जून 2019को, शंघाई अंतर्राष्ट्रीय विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय की रिपोर्टर टीम राष्ट्रीय चाय संग्रहालय के दौरे पर गई। यह चीन में चाय और चाय संस्कृति से संबंधित एकमात्र राष्ट्रीय संग्रहालय है, जो चीन के दक्षिण-पूर्वी शहर हांगचऊ के वेस्त लेक के पश्चिम में स्थित है।
हांगचऊ चीन की चाय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण जन्मस्थान है। इसे "चाय की राजधानी" के नाम से जाना जाता है और यहां हजारों वर्षों से चाय पीने की परंपरा है। लगभग 2, 000 सालों से पहले हांगचऊ में चाय का उत्पादन शुरू हुआ था। तांग और सोंग राजवंश में, हांगचऊ शहर में चाय पीने की परंपरा और प्रबल हो गई। उस समय साहित्यकारों ने चाय क्लब की स्थापना की, और राजमहल में आधिकारिक चाय आपूर्ति विभाग स्थापित किया गया था। चाय बनाने और पीने की विधि अनुष्ठित हो गई। लोग दोस्तों के साथ चाय पीते थे और विधिवत् चाय प्रस्तुत करने के द्वारा अतिथियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते थे। चीन एक प्राचीन सभ्यता वाला देश है। चीनी लोग संस्कारों और शिष्टाचार को बहुत महत्व देते हैं। जब मेहमान घर पर आते हैं, चाय पिलाना अपरिहार्य है। मेजबान आमतौर पर मेहमानों के पसंदीदा स्वाद वाली और सबसे अच्छी चाय पिलाता है।
क्यों हांगचऊ में चाय संस्कृति लंबे समय तक बनी रह सकती है ? इसके पीछे दो कारण हैं। पहला, हांगचऊ में पर्याप्त जल संसाधन है। विश्वविख्यात वेस्ट लेक हांगचऊ में स्थित है, और दुनिया की सबसे लंबी कृत्रिम नहर “बीजिंग-हांगचऊ ग्रैंड नहर” और छेनथांग नदी, जो कि बड़े ज्वार की लहर के लिए प्रसिद्ध है, हांगचऊ से गुजरती है।दूसरा, हांगचऊ में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु है। यहाँ की जलवायु गर्म और आर्द्र है। यहाँ अक्सर हवा और बारिश होती है, और कभी कभी कोहरा भी होता है। चाय के पेड़ों की खेती करने के लिए ऐसा जलवायु अद्वितीय है।
हम सभी जानते हैं कि चीन के अलावा चीन का पड़ोसी भारत भी एक प्रसिद्ध चाय उत्पादक है। भारत में दुनिया की लगभग एक तिहाई चाय का उत्पादन होता है। भारत में चाय की खेती करने की शुरुआत चीन से 80,000 चाय बीजों को भारत लाने से हुई थी। 1830 के दशक से पहले भारत में ज्यादातर चाय के पेड़ जंगली थे और ये भारत के असम राज्य के पूर्वोत्तर जंगल में बिखरे थे। 1833 में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समिति की स्थापना की जिसने चीन से 80,000 चाय के बीज इकट्ठा किए और उन्हें भारत के चाय बागानों में लगाया। भारत की दार्जिलिंग चाय दुनिया की प्रसिद्ध चाय में से एक है और उसे ‘ब्लैक टी में शैम्पेन’ कहा जाता है। दार्जिलिंग चाय तो चीन के फ़ुच्यान प्रांत के वुई पहाड़ों में मिलने वाली छोटी किस्म की काली चाय है। 1857 में, एक ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री ने चीन की इस चाय के मूल्य का पता लगाया। ब्रिटिश सरकार के निर्देशानुसार, उन्होंने इसी चाय के बीज इकट्ठा करने के लिए लोगों को फ़ुच्यान प्रांत में भेजा और दार्जिलिंग में चाय उगाने के लिए चीन से कुशल श्रमिकों को भारत में लाया। कई सालों बाद चीन की काली चाय भारत में सफलतापूर्वक बस गई, और तब से लोगों ने दार्जिलिंग के नाम पर इसे दार्जिलिंग ब्लैक टी का नाम दिया है।
जबकि भारत से आए बौद्ध धर्म का चीन की चाय संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है और इसी प्रभाव से चीन की चाय संस्कृति के विकास को बढ़ावा मिला है। जब से बौद्ध धर्म चीन में फैलने लगा, तभी से बौद्ध धर्म का चाय के साथ घनिष्ठ संबंध बन गया। चूंकि बौद्ध साहित्य के अनुसार चाय भिक्षु-भिक्षुणियों के ध्यान लगाने में मददगार है, इसलिए भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए चाय बहुत जरूरी है और चाय पीने की आदत धीर धीरे उनके बीच प्रचलित होने लगी। भिक्षु-भिक्षुणियों ने चाय पीने के साथ साथ मंदिरों में चाय की खेती भी करते थे, जिससे उन्होंने चाय की खेती को भी बढ़ावा दिया। इस से हम देख सकते हैं कि चाय चीन और भारत के बीच की गहरी दोस्ती का एक चिह्न है।
इस बार की यात्रा से हमने चाय संस्कृति के बारे में बहुत सारी जानकारियां प्राप्त की हैं, विशेषकर हमें पता चला है कि चाय चीन और भारत के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसलिए, हमें चाय संस्कृति के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना चाहिए और चीन-भारत की दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहिए। (शंघाई अंतर्राष्ट्रीय विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय के रिपोर्टर टीम की सदस्य दिशा/Wang Hongyu)
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