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“हिचकी ”: फ़िल्म समीक्षा


12 December 2019 | By hiadmin | SISU

फिल्म की मुख्य कहानी यह है कि फिल्म की हीरोइन नैना माथुर बचपन से ही टॉरेट सिंड्रोम की बीमारी से पीड़ित थी। टॉरेट सिन्ड्रोम की परेशानी से इंसान के दिमाग ठीक से नहीं चल सकता, जिसकी वजह से उसको लगातार हिचकियां आती रहती हैं और अजीब शोर करती रहती हैं। इस बीमारी के कारण उसे अपनी आम ज़िंदगी में नाना प्रकार की मुसीबतों में फंसना पड़ता है। फ़िल्म में बचपन में  सिर्फ़ स्कूल के दुसरे विद्यार्थी उसकी हँसी उड़ाते थे , बल्कि उसे स्कूलों से भी कई बार ड्रॉप आउट दिया जाता था। चाहे जीवन में अंधेरे बादलों से छाया हुआ क्यों हो, नैना अध्यापिका बनाने का सपना ही रखती थी। नैना को कई स्कूलों से ड्रॉप आउट दिया जाने के बाद उसे अपने जीवन में मार्गदर्शक अध्यापक खान मिले। अध्यापक खान ने नैना को समझाया कीएक आम टीचर सिर्फ़ पढ़ाता है एक अच्छा टीचर समक्ष होता है। और बहुत अच्छे टीचर को पता है कि विद्यार्थी को कैसे प्रेरित करना है।

       नैना अध्यापिका बनने की बहुत कोशिश करती थी। पर १८ बार असफल होने के बाद १९ वीं बार उसे एक मौका मिल गया। वह स्कूल में क्लासएफ़ के १४ बच्चों की अध्यापिका बन गई। पर इन १४ बच्चे स्कूल के दूसरे बच्चों से अलग थे। वे सभी स्लमडॉग में रहनेवाले थे। उन्हें पढ़ाई नहीं पसंद थी।अध्यापिका नैना धीरे-धीरे एक-एक कदम से बच्चों के दिलों में जा पहुंची। कक्षा को मजेदार बनाने के लिए वह कक्षा क्लासरूम के बजाए मैदान में लेने लगी। समय के साथ बच्चे अच्छे बन गए। फिल्म के अंत में अध्यापिका नैना ने अपने सपने को पूरा किया और एक अच्छी टीचर बन गई। छात्रों ने भी अपने जीवन को बदल दिया और समाज में प्रवेश किया।

      फ़िल्म का स्क्रीनप्ले उम्दा लिखा है। कहा गया है की वह दुसरे फ़िल्म की नक़ल की है। फिल्म की शैली पूरी तरह भारतीय है। मुझे लगता है कि यदि दर्शकों को बताए जाए , तो बहुत शायद कभी नहीं जानें कि यह फिल्म नक़ली है।हिचकफ़िल्म के कुछ दृश्य अच्छे बने हुए हैं , जो दिल को छूते भी हैं , जैसे नैना के बचपन के दृश्य , नैना और उसके अध्यापक खान के साथ हुआ दृश्य, नैना द्वारा बच्चों को अपने डर दूर किया जाने वाला दृश्य। लेकिन कुछ ऐसे दृश्य भी थे जिनमें नामकी पकड़ छूट जाती है खासतौर पर नैना और उसके पिता के बीच के दृश्य बेहद सतही और बेमतलब के लगते हैं और फिल्म में कुछ अतिशयोक्ति के दृश्य हैं जैसे बच्चों के अकादमिक प्रदर्शन में अचानक तेज सुधार हो रहा था। और ये १४ बच्चे समाज में प्रवेश कर सभी उच्च वर्ग में सम्मिलित हुए। हम सभी जानते हैं कि भारतीय समाज में विभिन्न वर्गों के बीच बड़े मतभेद हैं। एक नीच वर्ग का आदमी उच्च वर्ग का बदलना आसान नहीं है, पर फ़िल्म में कई ऐसे दृश्य दिखाया गया है कि यह आसानी से किया जा सकता है। 

    हालाँकि इस फ़िल्म की छोटी मोटी कमियाँ हैं , बल्कि कई दृष्टि से फ़िल्म देखने लायक़ हैं। (Sang Ji/शुभा)

 
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