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“उमराव जान”:फिल्म समीक्षा


12 December 2019 | By hiadmin | SISU

मुहब्बत और क़िस्मत फिल्मों के दो शाश्वत विषय हैं लेकिन हज़ारों फिल्मों में इन का ऐसा चित्रण बहुत कम मिलता है, जो दिल को छू सकता है।उमराव जानभाव और कला दोनों दृष्टियों से उत्तम फिल्मों में से एक है।

फिल्म मिर्ज़ा हादी रुस्वा के उपन्यास "उमराव जान अदा" पर आधारित है। यह एक 19वीं शताब्दी की कहानी है अम्मिरन नाम की एक लड़की (ऐश्वर्या राय) फै़जा़बाद के एक सामान्य परिवार की लड़की थी। किंतु एक दिन अम्मिरन के पिता के दुश्मन ने बदले लेने के लिए अम्मिरन को पकड़कर लखनऊ के एक वेश्यागृह की मालिकिन ख़ानूम साहबा को बेच दिया।

ख़ानूम साहबा ने अम्मिरन का नाम उमराव रखा। मौलवी यानी उसके दत्तकीपिता उसे कविताएँ लिखना सिखाता था। कई साल बाद उमराव लखनऊ की एक मशहूर तवायफ़ बनी। उमराव के सौंदर्य और नृत्य से प्रभावित होते हुए नवाब सुलतान उस के प्रेम में फँस गया अपने बेटे को एक तवायफ़ से मुहब्बत होने की बात सुनते ही सुलतान के पिता को गुस्सा गया फिर उसे बेदख़ल कर डाला।

पैसे के अभाव से सुलतान अपने मौसे के साथ गढ़ी गया सुलतान से बिछुड़कर उमराव सचमुच ही अखरने लगा। इश्क में डूब गई उमराव अपना पीछा करनेवाले डाकू अली का उपयोग करने से गढ़ी पहुंची लेकिन सुलतान उसे बेवफा मानता इसलिए उसने उमराव को छोड़ दी।

उमराव किसी तरह अपने गृहनगर फ़ैज़ाबाद लौटी जहां अपने परिवारजनों के कारण नगर की पहचान थी। दुर्भाग्य है कि माता और छटे भाई ने उसे घर से भगा दिया। अंत में बेचारी उमराव को अकेले ही रहना पड़ा।

इस फिल्म के बहुत कुछ गुण हैं अभिनेताओं का चयन ही बहुत सफल था। ऐश्वर्या राय की नील-मणि जैसी आँखों को देखते ही दर्शकों को ऐसा लगता है कि फिल्म ख़त्म होने पर भी मानो आधी ही चली हो। इसके अलावा इस फिल्म में शबाना आजमी, अभिषेक बच्चन आदि आदि बॉलीवुड सितारे जमे हुए हैं।

स्क्रीनप्ले भी उम्दा लिखा गया है उमराव एक कवि होने के कारण फिल्म के तीन घंटों में कई कविताएँ रटी जाती सुनाई देती थी जिससे पात्रों के संवाद बहुत साहित्यिक लग रहे थे।

गीत और नृत्य के द्वारा जीवन-खंड दर्शाना और भावनाओं को व्यक्त करना भारतीय फिल्मों की विशेषता है, लेकिन अनगिनत भारतीय फिल्मों में प्रभावशाली गीत और नृत्य बहुत कम है।उमराव जानमें छह नृत्य हैं, जो सिर्फ सुन्दर हैं, बल्कि सार्थक हैं। शायद वजह यह है कि उमराव नृत्य के माध्यम से पैसे कमानेवाली तवायफ़ थी, उसकी भावना अपने मुँह से नहीं, बल्कि नृत्य से वयक्त करना ही उचित है। पहला नृत्य उमराव तवायफ़ बनकर पहलामुजराहै, जो लखनऊ के अमीर लोगों को आकर्षित करने के लिए नाचती थी। बिना यहमुजरा”,उमराव और सुलतान का प्यार नामुमकिन होगा। जब उमराव सुलतान की प्रेमिका बन गई, तो उसने दूसरा नृत्य नाच दिया ,जिसमें अपनी खुशी और शरमिंदगी दिखाई दी।

जब सुलतान को उमराव एक तवायफ़ होने के कारण उसकी वफादारी पर संदेह हुआ ,तो उमराव उदासी से नाचने लगी और अपना दु:साध्य भाग्य के लिए आह निकाली

मेरी राय में, फिल्म के अंतिम भाग में, जब अपना प्रेमी, अपने दत्तकीपिता, अपने रियल परिवारजन आदि सब लोगों को खोने के बाद एक शादी में नाची, यह पूरी फिल्म का क्लाइमैक्स है। नीली पोशाक और उसकी उदासी का मिश्रण बेहतरीन है।

उमराव जानमें व्यंग्य का उपयोग भी हुआ। दत्तकीपिता उमराव को बहुत प्यार था, लेकिन उमराव की असली माता को उससे घृणा था। उमराव का प्रेमी उसे छोड़ा लेकिन डाकू अली उसकी रक्षा करता रहता था। 

हालांकि कई दृश्य और बीजीएम के स्विच करने में थोड़ी जल्दबाज़ी है और कहानी प्रवाहमय नहीं है, फिर भी इसके भाव-व्यंजन में सफलता मिली है। एक सौ साल पहले के भारतीय समाज में नारी का दर्द उमराव की दृष्टि से दिखाया जाता है। मुहब्बत की शक्ति के साथ लखनऊ आकर उसने अपना भाग्य का फैसला किया।

लेकिन त्रासदी हमेशा आकर्षक है, “उमराव जानहमेशा सबसे क्लासिक फिल्मों में से एक है।(Tian Shiyu/निखिला)

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