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चारुलता: फ़िल्म समीक्षा
12 December 2019 | By hiadmin | SISU
सत्यजित राय 20वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिने जाते हैं। पहली फ़िल्म “पथेर पांचाली” से ही उन्हें दुनिया से जाना गया है। उन्होंने देश-विदेश के बहुत पुरस्कार पाए हैं। अपु त्रयी और कलकत्ता त्रयी के अतिरिक्त “चारुलता” उनके सर्वोत्कृष्ट कृति मानी जा सकती है। काना फ़िल्म उत्सव पर इसी कृति पर उन्हें “गोल्डन बेयर” का पुरस्कार मिला है। चारुलता कमर्शियल फार्मेट में नहीं बनायी गई है, बल्कि इंडिय(indie)फ़िल्म के रूप में। लेकिन यथार्थ का अच्छा चित्रण और सकुशल फ़िल्म कौशल की वजह से साधारण लोगों को चारुलता भी बहुत पसंद आती है।
राय के बहुत सिनेमा साहित्य पर आधारित हैं। उन के सबसे प्रिय साहित्यकार हिंदी तथा ऊर्दू का मुँशी प्रेमचंद हैं और बँगाली का टेगोर हैं। “चारुलता” ही टेगोर का लघुकथा “नष्टनीड” पर आधारित है। नष्टनीड का मतलब टूटा हुआ खोंसला है, और फ़िल्म में भी एक टूटनेवाला परिवार है। कहानी 19वीं शताब्दी 70 दशक की एक अकेली पत्नी की है। उसकी रुचि साहित्य और कविता में है मगर उसके पति भूपति राजनीति का बड़ा शौकीन है। वे रोज़ अपने राजनीतिक क़ाग़ज़ों में लगता रहता था। चारु का अकेलापन हवेली में छा गया। उस समय चारु का देवर अमल पहुँचा। यह युवक भावावेशपूर्ण और मिलनसार है, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह साहित्य का स्नातक है, मन में अपना लेख मशहूर पत्रिका पर छापने का महत्वाकांक्षा है, इसलिए भूपति ने उससे कहा कि चारु को लिखना के लिए प्रेरणा करे। अमल ने मान लिया। वे दोनों साहित्य पर बातचीत करते रहते थे और क्रमशः चारु अमल पर प्यार करने लगी। उसी समय भूपति के काग़ज़ का दिवाला निकला। अमल दूसरे मित्र के वहाँ चला गया। चारु बहुत दुखी पड़ी। जब उसे अमल की चिट्ठि मिली, वह रो उठी। भूपति को यह दृश्य देखकर आश्चर्य हुआ पर वह कुछ नहीं कहते बना।
उन सालो में राय ने तीन फ़िल्में बनायीं: महानगर(1963), चारुलता(1964), कापुरूष(1965)। ये तीनों फ़िल्मों में पहली बार औरतों का इतना बड़ा महत्व दिया गया। चारुलता में अमल से मुक़ाबला करने के लिए चारु भी लिखने लगी और उसका लेख एक प्रख्यात पत्रिका पर छापा गया। यह ख़बर सुनकर भूपति ने जो सिर्फ राजनीति में लगता है भी उस की क्षमता मान ली। चारु ने अपनी क्षमता सिद्ध की और इस फ़िल्म से नारी को भी स्क्रीन पर अपना स्थान मिल गया।
विषय के सिवाए इस फ़िल्म के कौशल का विश्लेषण करने के योग्य है। बहुत से आलोचक चारुलता को राय की सबसे निष्णात फिल्म मानते हैं। विश्लेषणात्मक तरीका और कम शब्दों तथा सटीकता के साथ मानसिक घटना को अभिव्यक्त की उनकी क्षमता चारुलता में ही अपने शिखर पर पहुँचती है। वे कौशल को कला में, मात्रा को गुण में और सज्जा को भावनात्मक अभिव्यक्ति में बदल देते हैं। प्रारंभ में जिस दृश्य में चारु का अकेलापन दर्शाता है वह शब्दरहित चरित्र-चित्रण का उत्कृष्ट उदाहरण है। दूरबीन की तकनीक द्वारा हम चारु की नज़र से देख पाते हैं। साथ ही झूले का इस दृश्य में सूक्ष्मता से चारु के पाँव ज़मीन का स्पर्श करने का चित्रण किया गया है। यह सबसे प्रभावशाली दृश्य है। इसके अतिरिक्त फ़िल्म में बचपन के दिनों का स्मरण करने का लंबा दृश्य आकर्षित है। इसमें एक खूबसुरत लय है जिसे झूले के मंददोलन के साथ उस नाव का दोलन को मिलाकर गढ़ा गया है। उस माहौल में चारु अतीत की स्मृत में डूबी हुई और इसके बारे में वह लिखना चाहती है। इस फ़िल्म का वर्णन करने में यही श्रेष्ठ गुण है कि यह चारुलता की साधारण रूप-रेखा लगाकर कहानी का सौंदर्य ऊपर उठा लेती है।
अभिनेत्री का अभिनय और फ़िल्म में संगीत भी सर्वश्रेष्ठ हैं। ये सब मिलाकर “चारुलता” भारतीय फ़िल्म इतिहास में सबसे निष्णात सिनेमा में से एक बनता है। पिछले साल यह पेइचिंग फ़िल्म उत्सव पर भी दिखाया गया है, जिसे अधिक फ़िल्म प्रेमियों ने देखा है।(Chen Xuying/प्रतिभा)
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