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उपन्यास त्याग-पत्र में प्रतिबिंबिंत नारी से संबंधित पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था
26 April 2021 | By hiadmin | SISU
उपन्यास में, मृणाल और सिला के भाई एक-दूसरे को पसंद करते थे, लेकिन भारत में अरेंज मैरिज की परंपरा के कारण, मृणाल को अपने पति चुनने का अधिकार नहीं था, और दूसरे आदमी से शादी करने के लिए मजबूर थी। दुर्भाग्य भरी इस पारंपरिक विवाह प्रणाली ने सीधे उसके दयनीय जीवन का आकार बना दिया। भारत समाज में विवाह से संबंधित कई रूढ़ियाँ और कुप्रथाएं हैं, जैसे बाल विवाह, दहेज प्रथा, अरेंज मैरिज, सती प्रथा आदि। यद्यपि आधुनिक काल में, समाज के विकास के साथ, लोगों के विचार बदल गए हैं, और सरकार ने प्रासंगिक कानून और नियम भी जारी किए हैं। इन बुरी आदतों को कुछ हद तक सुधार भी दिया गया है, लेकिन इनमें से कई विचार अभी भी भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित करते हैं। यदि यह कहा जाता है कि विवाह प्रणाली ने मृणाल के दुर्भाग्यपूर्ण जीवन की शुरुआत की, तो सामंती विचारधारा और सामाजिक वातावरण ही वे हाथ हैं जिन्होंने उसे दुर्भाग्य की खाई में धकेल दिया है।
उपन्यास में, मृणाल अपने पति द्वारा छोड़ा जाने के बाद धीरे-धीरे समाज के निचले वर्ग में गिर गई और सामान्य समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। पति से छोड़ी गई महिला होने के कारण उसे एक अपवित्र और दुराचार की महिला मानी जाती थी। समाज द्वारा ऐसी महिला पर भेदभाव करता है। उसकी स्थिति विधवा की जैसी रहती थी। विधवा के साथ दुर्व्यवहार भारत में हजारों वर्षों से चलता आया है। जैसे सती प्रथा “कर्म” के सिद्धांत से प्रभावित होकर पैदा हुई, यह माना जाता है कि विधवाओं को पति के साथ दफनाने से उनकी मृत्यु के बाद स्वर्ग में उड़ सकती हैं। बाद में, धीरे-धीरे सती प्रथा महिला की पवित्रता के प्रतीक के रूप में विकसित हुई। मृणाल जैसी स्त्री को न केवल समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है, बल्कि अपने रिश्तेदारों के साथ संबंधों को भी काटा जाता है। समाज के भेदभाव और स्त्रियों के उत्पीड़न के कारण, उनके लिए जीवित रहना मुश्किल भी है, और पारंपरिक सामंती सोच धीरे-धीरे मृणाल की गरिमा घटाती रहती थी। वह समाज के नियमों को समझती है, लेकिन वह विरोध नहीं करती, चुपचाप सहना ही पड़ती थी। वह पहले आजादी के लिए तरस रही थी। बाद में उसने समाजिक नियमों का पालन करने लगी। वह एक पुरुष की अधीन सामान बन गई। और तब उसने अपनी पहचान को भी खो दिया जब वह एक घृणित बस्ती में रहने लगी। अंधेरे में आध्यात्मिक मुक्ति की मांग चाहे कर रही हो भी क्या फल आएगा। उस समय उसने संघर्ष करना छोड़ दिया है और अपनी नियति पूरी तरह मान ली।
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