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चीन की खान-पान संस्कृति की विशेषताएँ


27 December 2016 | By hiadmin | SISU

संस्कृति अलख एवं निर्गुण चीज़ है। लेकिन वह कुछ दूसरी चीज़ों के द्वार सगुण रूप में प्रतिबिंबित किया जाता है। खान-पान तो संस्कृति का दर्पण है जिस में कोई देश या जाति की सांस्कृतिक विशेषताओं की झलक मिल सकता है।

पहले ही मैं तो जानता था कि चीनी खान-पान परंपरा दूसरे अन्य देशों की से ख़ूब भिन्न है और उन भिन्नों में से सबसे विशेष बात है कि चोपस्टिक का उपयोग करना। किंतु अपने देश से बाहर निकलकर विदेश में कुछ समय के लिए रहने के बाद तो मैंने देखा लि न सिर्फ़ खाना खाने की साधनाओं पर, बल्कि और पक्षों पर भी बहुत अंतर है और इन अंतरों के कारण विदेशी लोग हमें पर नहीं समझ सकते। मेरे ख्याल में एसा मालूम होता है कि हम अपने बचपन से लगी हुई खान-पान आदत पर चुनौती से मिले।

मेरे अपने आप भोजन बनाते समय रसोईदार अक्सर अजीब लगते थे कि क्यों? क्यों चीनी लोगों को भोजन बनाने के लिए इतने प्रकार जाहिए? एक बार उसने एक मुर्गा लाया और मुझे बुलाकर भोजन बनाने माँग दिया। मैंने तो माँस के बनावट के अनुसार इस मुर्गा को पाँच भाग विभाजित किए और अलग अलग भाग से अलग अलग प्रकार भोजन बनाए। समय पर अजीब भाव सहित आवाज़ पिछे से आई। “अरे बाप रे! इतने प्रकार चिकन क्या ज़रूरत है?” भारत में आम तौर पर भोजन के लिए दो या तीन प्रकार की तैयारी करती है। लेकिन हर प्रकार भोजन में संक्या बहुत बड़ी है। इस की तुलने में चीन के भोजन के मानक है कि कम से कम तीन प्रकार भोजन और एक सुप या भोजन करने वाले लोगों की संक्या के अनुसार भोजन के प्रकार निश्चीत होता है। लेकिन आम तौर पर हर प्रकार में संख्या स्थायी है। और दूसरी बार एक प्रोफ़ेसर के स्वागत के लिए मैंने फ़िर एसे भिन्न भिन्न भोजन भोजन बनाये और रसोईदार की समस्या के लिए उपर्युक्त कारण बताया। पर उनकी राय में एकमात्र विचार है कि चीन एक बहुत अमिर महान देश है।

दूसरी एक विशेषता है। शायद सिर्फ़ चीन में ऐसा भोजन करते हैं कि सभी लोग मेज़ को घिराते हुए बैठते हैं और भोजन के थालियाँ मेज़ पर रखी है। सभी लोग अपने चोपस्टीक से थालियों में खाने निकालकर खाते हैं। यह तो भिन्न की जगह है कि विदेशी लोग भोजन के दान में एक सार्वजनिक चम्मच से एक बार में काफ़ी खाने निकलकर अपने थाली में रखते फ़िर खाते है। इसलिए जब हम विदेशी सहपाठियों को हमारे भोजन का कुछ स्वाद लेने के लिए आमंत्रित करते थे, उन की चेहरे पर लज्जित भाव मालूम होती थी। न जाने स्वच्छ की चिंता हो या नहीं।(Lin Wenzhi/कमलशील)

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