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दक्षिण भारत में हमारी कहानियाँ


06 May 2017 | By hiadmin | SISU

सरदी छुट्टी में हमने दक्षिण भारत में सफ़र किया। इसके दौरान बहुत मज़ेदार बातें हुईं। अब मैं अलग अलग कहानी से कुछ बताती हूँ।

हमारे लिए एक अल्पकालिक बस स्टोप

प्रीति को चिंता थी कि ट्राइन में ठंडा होगा, इसलिए हम कुछ ख़रीदने के लिए कोचीन फ़ोर्ट से लू लू मोल गयीं, नारंगी रंग की .सी. बस से। जब हमें सब मिलकर वापस जाना था, हम कोई बस स्टोप ढूँढ नहीं पायीं। किसी ने कहा था कि वह एक गिरजे के पास है,पर कोई गिरजा दिखाई नहीं दी, सिर्फ़ आती-जाती गाडियां और एक पुलिस। हम उस के पास गए और पूछा कि बस स्टोप कहाँ है? उसने कहा कि बैठो, वह आनेवाली है। यहाँ? हाँ ! हम बैठीं,सड़क के किनारे पर,धूल हमारे पास नाच रहा था, तेजी धूप हँस रही थी, जैसे सब कह रहा था कि बेवकूफ़, ईधर बस कैसे मिलेगी! हमें भी संदेह था कि यह पुलिस मज़ाक उड़ा रहा है क्या! दस मिनट बीत गये, बस भी नहीं आयी। हमने फिर एक बार पुलिस को पूछा। उसने कुछ नहीं कहा, सिर्फ़ हाथ के संकेत से यह बता रहा था- “आराम से दो मिनट के बाद वह बस आख़िर आयी, पुलिस ने उस बस की तरफ़ अपनी लकड़ी को हिलाया। वह बस अचानक रुक गयी, सड़क के बीच में! फिर एक कंडक्टर जैसा आदमी उतरा और बस के आसपास की गाड़ियों को सब रोक दिया ताकी हम सड़क पार करके बस पर चढ़ सकें। आख़िर हम नारंगी बस में आराम से बैठीं और सुरक्षित रूप से वापस गयीं। पर अफ़सोस कि बात यह है कि हमें उस पुलिस को धन्यवाद करने का मौका नहीं मिला, जिसने हमारे लिए एक अल्पकालिक बस स्टोप बनाया।

जीने की अधिक शैलियां

दक्षिण भारत में हमें कुछ जीनी मिले। कन्याकुमारी में एस कुमारी और बी कुमार मिला। एस कुमारी को अपने सफ़र में बी कुमार मिला। बाद में वे एक साथ बी की मोटर-साइकिल पर भ्रमण करने लगे। एक साथ हम्भी का सूर्यास्त देखा, एक साथ मठ में तिब्बत के साधु के साथ मोमो

बनाया। इस दुनियान का संपाती भेंट इतनी मनोहर है! सफ़र के बाद एस कुमारी जैपुर जाकर वहाँ आभूषण बनाना सीखेगी।

मैसोर में हमें एक और दंपती मिला। वे वहाँ योग सीखते थे। उन्होंने हमें उनका मैसोर के अमीर इलाके में स्थित घर दिखाया, जो ४०००० रुपए के किराये पर मिला। वह घर दो मंज़िलों और चार कमरों का है। उस में रसोई, स्नानघर, बाग सब कुछ है। नौकरानी कभी कभी आकर सफ़ाई करती है। ये सब ४०००० रुपये पर मिल सकता है, जो शानखाई में नामुमकिन है। योग की कक्षा के बारे में उन्होंने कहा कि वे सिर्फ़ शौक के आधार पर यहाँ आये। पर बहुर लोग यहाँ प्रमाणपत्र लेने आए ताकि नौकरी का ज़्यादा मौका मिल सके और ज़्यादा पैसे कमा सकें।

ये सब सुनकर मैं सोचने लगी कि हिंदी सीखने से मैं सिर्फ़ भारतीय के साथ बातचीत कर सकती , अख़बार पढ़ सकती, भविष्य में शायद एक अनुवाद की नौकरी कर सकती हूँ, मेरे जीने की जगह, जीने की शैली, जीने का संभावना भी ज़्यादा बहुत है। आगे चलकर मैं ज़रूर इस का फ़ायदा उठाउँगी।

मंदिरों के हाथी

पहले मुझे मालूम नहीं था कि मंदिर में हाथी हो सकता है, क्योंकि हाथी इतना बड़ा है और ज़्यादातर मंदिर बहुत छोटी। पर मीनाक्षी अम्मा मंदिर में मुझे एक हाथी मिला, जिसे शुभ कहा जाता है। दस रुपए को हाथी के पास के स्वामी को देने के बाद हाथी ने अपने सूँड़ को मेरे सिर पर लगाया, जो भी शुभ तहज़ीब है।

हम्भी में हमने मंदिर के हाथी लक्षमी के स्नान का इंतज़ार किया। नदी के किनारे पहुँचने के लिए उसे सीढ़ियों से उतरना पड़ता था। और जब वह नदी में पानी के साथ खेल रहा था, वहाँ के निवासी भी उसी नदी में नहा रहे थे। नहाने के बाद लक्ष्मी को फिर एक बार सीढ़ियों से उपर चढ़ना पड़ता था। ये सब दृश्य बहुत मनमोहन थे।इंदु/顾青子)

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